मंगलवार, 5 नवंबर 2013

भईयादूज

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कजरी कि अधमुंदी आँखे
आहट के एहसास से चहक उठी
आ गए तुम !
कैसे ना आता दीदी !!
त्रिवेणी कि आवाज कानो में रस घोल गई
मुस्कुरा कर कजरी ने आँखे खोली
कमरे में गुप्प सन्नाटे के आलावा कोई नही था
मन के आंगन में घबराहट आने लगी
माथे पर पसीने कि बूंदे उभर आई
कजरी उठने लगी तो उसका हाथ
बराबर में रक्खी थाली से टकराया
कजरी ने थाली कि तरफ देखा
रोली मोली चावल की थाली को भी
त्रिवेणी का इन्तजार अभी भी बाकी था
एक बार फिर से कजरी ने अखबार उठा लिया
पता नही कितनी बार पढ़ चुकी थी
इस बार फिर से हैडलाइन पर ही निगाहें अटकी थी
बीते दिनों में यहाँ बलवा हुआ था
हिंसा कि आग में बहुत कुछ भस्म हो गया
शहर और गॉव में अभी भी दहशत का माहोल है
दंगो के बाद जिले में वारदातो का दौर जारी है
ऐसा पहले कभी नही हुआ
हमेशा ही
भईयादूज पर त्रिवेणी
सुबहा ही आ जाता था
वो तो अब भी आने को तैयार था
लेकिन मैंने ही मना किया था इसबार
भाई
भईयादूज तो अगले साल भी आएगी
त्रिवेणी तेरे साथ कुछ हादसा हो जाये
तो किसको मुँह दिखाउंगी
मेरा भाई मेरी खुशियों में साथ रहे
यही कामना है मेरी
मैं तेरी लम्बी उम्र कि रोज़ दुआ मांगती हूँ
भाई मैं तेरी जिंदगी को खतरे में नही डालूंगी
इस बार मैं भईयादूज पर तुझको नही बुलाऊंगी
कजरी नल के पास गई और
चेहरे को धोने लगी
अब तक सुकून की हवा पानी में घुल चुकी थी
कजरी भी सम्भल चुकी थी
सधे हुये कदमों के साथ चल कर
कमरे में पहुच कजरी ने
सजी हुई थाली को उठाया और पलंग पर आकर बैठ गई
फिर मुस्कुराते हुए थाली में रक्खे
नारियल को उसने तिलक किया चावल भी लगाया
और खुद ही बुदबुदाने लगी
भाई तू सुरक्षित रहना चाहिए
भईयादूज तो हर साल आएगी
#सारस्वत
05112013

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