रविवार, 15 दिसंबर 2013

साँसो के मोहताज

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साथ ना दे जिस्म का साँस अगर दिल घूट के मर जायेगा
जीने मरने का नगमा फिर भला कोई कैसे गुनगुनाएगा
सोचा ना था इजहार ऐ मोहब्बत का असर यूँ भी होता है
सुर्ख रंग खुद ब खुद शरमा के यूँ चेहरे पे ही उतर आएगा
लैहरा के आई अब के दिल की बगिया में इश्क की फ़सल
दिल कि बस्ती में फिर से कोई अपना ही आग लगाएगा
जो धड़कता है बेचैन सा होकर सीने में बता दे दुनियां को
बेजुबां इश्क रहा अगर तो किसी रोज़ गूँगा ही मर जायेगा
जिन्दा रिश्ते रगो में दौड़ते हैं मरने के बाद भी दुनियाँ में
साँसो के मोहताज का नगमा एक रोज़ गुनगुनाया जायेगा
#सारस्वत
15122013 

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