गुरुवार, 30 जनवरी 2014

बेशर्मी

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सभी जानते हैं , आईना खूब पैहचानता है
फिर भी बेशर्मी से निग़ाह मिला लेते हैं हम

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कितनी लम्बी है जिंदगी , किसको पता है
फिर भी रोज़ मिलने का दावा करते हैं हम
मुश्किल से मिलती है जिंदगी , ये पता है
फिर भी ग़ुनाह दर ग़ुनाह किये रहे हैं हम
सच को मखौटे की जरूरत नही , लेकिन
रोज़ एक नया नकाब पहन ही लेते हैं हम
कितने सच्चे हैं हम , हमको ये सब पता है
फिर भी झूठ कितना अच्छा बोल लेते हैं हम
पलपल मर रहा है जमीर , जिस्म की कैद में
कितनी अच्छी दुश्मनी खुद से निभा रहें है हम
आज भी कच्चे हैं हम , सबको ये भी पता है
फिर भी बेबाक बनने का ढौंग कर लेते हैं हम
#सारस्वत
30012014 

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