गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

उम्मीद लिखता हूँ मैं


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पैगाम ऐ मोहब्बत के गीत लिखता हूँ मैं
हर ऐक दरवाजे पे मैं उम्मीद लिखता हूँ
मरती उम्मीदों को सीने से लगा रक्खा है
जीने की चाहतों को मैं जिन्दा रखता हूँ
हौसले से दोस्ताना रिश्ता बनाया जब से
हर सूरत को आइने के सामने रखता हूँ
मेरे पास में कोई मखमली ख्याल नहीं हैं
हकीकत को जमीन पर ही खड़ा रखता हूँ
जला के ख्वाइशों को काजल बना लेता हूँ
बेचैनीयों को थपकी दे कर मैं सुला देता हूँ
नई सुभाहा के स्वागत में खुशियाँ लेकर
कलम की नौक से नई रौशनी लिखता हूँ
#सारस्वत
2102204 

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