सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

जय महाकाल


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व्यक्ति का निर्माण
परिवारिक परिवेश निर्माण करता है
व्यक्तित्व का निर्माण
सामाजिक चरित्र निर्माण करता है
परिवेश विचारीक ऊर्जा प्रदान करता है
विचार ही आचरण का निर्माण करता है
आचरण व्यवहार पर निर्भर करता है
व्यवहार सम्मान का मापदण्ड करता है
जब सम्मान से व्यवहार होने लगता है
व्यवहार ही आचरण होने लगता है
विचार सम्मान का दण्डवत होजाता है
आचार परिक्रमा में संलग्न होजाता है
विचार में लालसा , कर्म में लिप्सा
आदत में लालच भर जाता है , तो
चरित्र खुदबखुद आँख बंद कर लेता है
घमण्ड की सत्ता का गुलाम हो जाता है
तब  .......
मन का अवयव मानव नहीं रहता
मन के मन्दिर में ईश्वर नहीं रहता
विचार में सत्य जाग्रत नहीं होता
कर्म का उत्सर्जन नहीं होता
व्यवहार में चरित्र रंग बदल देता है
वचन गिरगिट हो जाता है
प्रारब्ध गर्त में खो जाता है
मानव जीवित होकर भी
जीवित नही रहता
जीवन जनम धर्म कर्म
क्रमशः मृत्युशैया पर होता है
सूर्य पूरव से उगता है पश्चिम से नहीं
मृत्यु देह की होती है आत्मा की नहीं
धर्म में ही प्राण हैं
ध्यान में ही ज्ञान है
जीवन छणभंगुर है
यही अटल सत्य है
परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है
जय महाकाल
#सारस्वत
24022014

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