शुक्रवार, 7 मार्च 2014

महिला "उम्मींद के आँसू" दिवस

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चटकने की आवाज ' पथरीले शब्दों से.....
उखड़ती सांसों पे ' तयशुदा निशानों से.......
हम हैं प्रतीक्षा में , नींद में ऊँघते..
चलो नोच डालते है उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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विद्रोह के नक़्शे ... स्मृतियों की वर्जनाएं '
घर की सीलन... मुखर आर्तनाद ;
जाल में फंसे … छटपटाते शिकार ,
भेद डाले - दूब चिन्ह ,
तोड़ डाले - लज्जा के भाव '
चलो नोच डालते है उम्मीदें ...
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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छातीयों को पीटते ' उच्च स्वर विलाप...
भाषा के विलोपन में ' भाषा का चमत्कार ;
बातें सी सीढियां , शब्दों सी आग ...
तिलिस्मी सी रचनाऐं ...
सब अय्यारी ..प्रभाव ,
चलो नोच डालते है उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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रेत ग़या , वह स्वर्ण युग...
मौन मुखर शब्द तलवार , ज्वाला शस्त्रागार ...
बातें जों बदलतीं ' चित्रों सी , मनमाफिक रंगों सी...
बंद कर दिए - मरुथली रास्तों के छोर.......
ढांप दिए उजालों के - तमाम रोशनदान........
चलो नोच डालते है उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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चलो ओढ़ लेते हैं - हम भी मातमी लिबास
जिनके सुर मिलते हैं ..ठहाकों , सलीबों से '
शोकगीत..गातें हैं , झुके सिर पर मुस्कुराते हैं ;
क्षुब्ध ज्वालाओं क़ा तर्पण करते हैं.......
चलो कुछ देर और वेश बदलते हैं..........
चलो नोच डालते है उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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समय हुआ - तो भूल गए रिश्ता
समय हुआ - तो साथ गए बंधे रिश्ते जैसा
मुझमें काँटे उगते हैं - केवल उसको चुभते हैं
रहा बंधा रिश्ता खूंटे के जैसा .....
मेरा जीवन चौपाये जैसा
चलो नोच डालते है उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
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खुली किताब के ये कुछ सबूत , खारे पानियों में बहा देते हैं ;
उलझी व्यस्तताओं की लटों में , राहत की चंद सांस लेते है......
खुली आँखों से रखते हैं ; दो मिनट के प्रायोजित मौन '
और... फिर ' गर्वित सहलाते हैं - पुनर्जीवन के चिन्ह
शवयात्रा के वैभव का गुणगान...... 'पीड़ा के आख्यान'
चलो नोच डालते हैं बची उम्मीदें ..
संकेतों की प्रतीक्षा में ...
#सारस्वत
07032014 

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