रविवार, 23 मार्च 2014










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आज़ाद भारत की , जिन्दा सी ख्वाईश आज भी है
आज़ादी खुली हवा सी , मेरी फरमाईश आज भी है
जिसके लिए कुर्बानियां दे दी , क्रांति रथ वीरों ने
उसी फलक को , रिहाई का इन्तजार आज भी है
मेरे माथे से , गुलामी की सियाही छूटती ही नही
मेरे सर को , इस हकीकत का मलाल आज भी है
चले थे हमवतन , हिन्दुस्तानियों की शक्ल में
लेकिन हिन्दू मूरों की बस्तियां , यहाँ आज भी हैं
दिलों के बीच में , मोहब्बत नही नफरत पलती है
खंजर सीनों में उतरने के लिए , बेताब आज भी है
दाग चहरों पर कितने हैं , गिनती करना मुश्किल
नस्लें गुजर गई , पहले दंगे का असर आज भी है
#सारस्वत
23032014 

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