गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

"आज को श्रंगार दो"


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जिन्दगी की राह में , ईक ख़ुशी की चाह में
मन का शंखनाद दो , सत्य को आकार दो
बढे चलो बढे चलो , बढे चलो उठा कदम
आज को श्रंगार दो , नव उदय सवांर दो

धुप की तपीश में भी , जोश का उबाल है
करम से अडिग रवि , चल बेमिशाल है
एक पुराणी बात याद , आ रही है यहाँ
करम को जीत लो , हार को धिक्कार दो
आज को श्रंगार दो , नव उदय सवांर दो

बादलों ख्यालों में , पुल बहुत बन चुके
सत्य की धरा पे तुम , कुछ भी न बुन सके
आग को संवाद दो , राग को निखर दो
आज को श्रंगार दो नव उदय सवांर दो

सर उठा के देख तू , काम भरपूर है
चित्त एकचित्त नही , तो उन्नति भी दूर है
ना योग के वियोग को , संयोग का नाम दो
तन को झंकार दो , सिंह सी दहाड़ दो
आज को श्रंगार दो नव उदय सवांर दो
#सारस्वत
16042014


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