गुरुवार, 31 जुलाई 2014

खामोश जी रहा था सफर …














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खुद चल के रौशनी मेरे , दर तलक आई
खामोश जी रहा था सफर , लो आई रोशनाई
खामोश जी रहा था सफर  …
कुछ बिखरी यादें कुछ , उलटी सीधी बातें
तन्हां लम्बी सी रातें , महफ़िल सजाने आई
खामोश जी रहा था सफर  …
जाले सख्त जॉन दीवारें , टूटे पाये गये बस्ते
दर्द गर्द सर्द हवा , सभी सैरगाह को आई
खामोश जी रहा था सफर  …
लहू चीखा आँसू सूखे , टपका टपका आहें
किश्तों में कत्ल जिसने किया , उसकी ना मौत आई
खामोश जी रहा था सफर  …
हमने सजाया ऐसे घर , सपनें जगा जगा
दामन में कंदील के , रंग लाई रोशनाई
खामोश जी रहा था सफर  …
किसने दीया जला के किया , रोशन जहान को
फिर से कोई तारा टुटा , या उम्मीद जगमगाई
खामोश जी रहा था सफर  …
#सारस्वत
10092003 

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