रविवार, 31 अगस्त 2014

बेटी दिवस पर लोरी

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उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……  उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……
उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……  उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……

दिन जदों जावे रात्ती आवे
सो जा सो जा बिटिया रानी
सो जा  … सो जा  …  तू भी सो जा  …
सो जा  … सो जा  …  बिटिया राणी
लोरी सुनाने आई निंदिया राणी
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चंदा बी आया  … आया …
तारे बी आये  … आये  …
चंदा बी आया  … तारे बी आये  …
सारे ही आये तन्नू , लोरियाँ सुनाने
सो जा  … सो जा  …  कुड़िये सीयाणी
कल नूं कहिये  … नई कहाणी …
लोरी सुनाने आई  … निंदिया राणी

उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……  उउउऊंऊंऊंऊंऊंऊं ……  
#सारस्वत
31082014 

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

कौन है आम आदमी











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आखिर ये आम आदमी है कौन , कब से सोच रहा हूँ ..
सवाल की मुंडेर पर खड़ा हूँ , यही जवाब खोज रहा हूँ ..

वो जिस ने दंगा नही चाहा कभी , क्या वो है आमआदमी ..
या जो तैयारियाँ कर के बैठा हो यहाँ , बस वो है आमआदमी ..

जो घर में कैद नजरबंद मुजरिम की तरहा , वो है आमआदमी ..
या जो मजहब की आड़ ले कत्ल कर देता है , वो है आमआदमी ..

जो रोज़ी रोटी की जद्दोजेहद में है उलझा , वो है आमआदमी ..
या वो जो नफरत की रोटीयाँ है सेकता , वो है आमआदमी ..

करे जो सियासत द्न्गेफसाद लाश की , नही वो आमआदमी ..
जो इंसानियत में घोलता हो जैहर , नही है वो आमआदमी ..

सिर्फ टोपी पैह्न्ने से नही हो जाता है , कोई भी आमआदमी ..
हिन्दू मुस्लिम के झगडे ना हों जो सोचता है , वही है आमआदमी ..

कोमी फसाद न हो जिसकी हो कोशिशें यहाँ , वही है आमआदमी ..
जो तोड़ सकता हो ये नफरत की दीवारें , बस वही है आमआदमी ..
#सारस्वत
05092013

क्या लिखूं ?















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पशोपेश में हूँ 
खुद में उलझा हूँ 
क्या लिखूं ?
कुछ भी लिखने से पैहले
ख्याल
अपने शहर की तरफ चला जाता है
क्या से क्या बन गया है
हस्ता खेलता शहर सुलगने लगा है
ये कैसी फिजा बैह रही है
जो नफरतों के बीज बो रही है
ऐसे तो ये कभी
सीधा खड़ा नही हो सकेगा
नफरत की बैसाखी के सहारे
आखिर ये कैसे चल सकेगा
दंगो ने शहर को
व्हीलचेयर पर पंहुचा दिया
हाथ पैर नाक कान आंख मुँह
वाला शहर
मेरी तरहा ही विकलांग हो गया है
मैं तो शरीर से ही विकलांग था
लेकिन मेरा शहर आज
हिन्दू मुस्लिम में बट गया है
मानसिक विकलांग हो गया है
#सारस्वत
10092013

ना जाने किस की बदनजर लग गई मेरे शहर को












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एहसास अल्फाज सब मोहताज हो गये मजहबों के
ना जाने किस की बदनजर लग गई मेरे शहर को

इस कदर दंगे हुए हैं मेरे शहर में कुछ इन दिनों में
खुले आम लोग कैहने लगे हैं साम्प्रदाई शहर को

झगड़ो से दूर रैहते थे कल सब चैन 'ओ, अमाल से
अब रोज़ ही झुलसाती है आग बवाल की शहर को

कल तलक तो इंसान बसते थे अमन की बस्ती में
हैवानों के हवाले ही कर दिया आज किसने शहर को

हिन्दू मुसलमान के नाम पर बट गये यहाँ मोहल्ले
ये हमने किस के नाम कर दिया अपने ही शहर को
#सारस्वत
04092013

शुक्रवार, 22 अगस्त 2014

मैं स्म्रति वन में ..



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मैं स्म्रति वन में ठहर गया 
असुवन काजल पे ठहर गया 
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खट्टी मिट्ठी यादों की क्यारी
कभी बचपन के गलियारों में
देह उडती पतंग के पँखों पर
मन सप्त रंग सा महक गया
मैं स्म्रति वन में ..
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कई त्रिष्णा झिलमिल हो उभरी
कहीं वेदना झुरमुट से निकली
झरझर रुनझुन बुँदों की बारिश
पल प्रतिपल अम्बर बहक गया
मैं स्म्रति वन में ..
#
सुर मधुर थाप ह्रदय मन्दिर में
चली चली रे पवन फिर उडी धूल
हुआ शंखनाद चला सम्वाद चक्र
पंखुरी बन उपवन तन चहक गया
.मैं स्म्रति वन में ..
#सारस्वत
27092013





शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

जय हिंद - जय भारत















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सोचता रहता हूँ अक्सर
खत्म हो जाये अगर
दंगो के जख्मों के निशान
मिट जाएँ फ़ासले
मिट हो जायें ये सब दूरियाँ
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एक  तरफ से आवाज आये - हर हर महादेव
दूसरी तरफ से जवाब आये - अल्लाह हो अकबर
मुस्कुराकर दोनों गले मिले , रोज़ की तरहा से
हाल पूछा खुशहाली का , आज फिर कल की तरहा से
कुछ देर साथ बैठे , ठण्डी हवा पीपल की छाँव तले
गली कूचे चौबारे साथ में , गलबहियाँ करने लगे
सोचता रहता हूँ अक्सर
खत्म हो जाये अगर
दंगो के जख्मों के निशान
मिट जाएँ फ़ासले
मिट हो जायें ये सब दूरियाँ
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ना तमंचे से बारूद निकला , ना तलवार घुसी किसी के अंदर
ना दिवार से पत्थर बरसे , ना भगदड़ मची शहर के अंदर
ना किसी ने फतवा जारी किया , ना किसी ने शखनाद किया
ना लाल के खून से लाल हुई धरती , ना नारी को शर्मिंदा किया
ना मजहब ने भौं सिकोड़ी , ना ही धर्म ने की आँखें चौड़ी
मजबूत खड़ी रही , मन्दिर मस्जिद में अमन शांति की जोड़ी
सोचता रहता हूँ अक्सर
खत्म हो जाये अगर
दंगो के जख्मों के निशान
मिट जाएँ फ़ासले
मिट हो जायें ये सब दूरियाँ

जयहिंद
जय भारत
इन्कलाब जिंदाबाद
 वन्देमातरम
#सारस्वत
15121991 

रविवार, 10 अगस्त 2014

#कन्याधन_रक्षाबंधन










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आने नहीं दिया 

धरा पर 

कभी नेह संचित

गोरैया चिरईया को 

खिलने नहीं दिया

कमल कवंल  


पुष्पित पल्ल्वित 


कन्या को

बिटिया की

गर्भ ग्रह में ही

भ्रूण हत्या 


करने वाले नर पिसाचों

आज  ,


खुश !! तो बहुत होंगे

बधाई देते हुये

कुलदीपक की 


सूनी कलाई को  

#कन्याधन_रक्षाबंधन

#सारस्वत


10082014


गुरुवार, 7 अगस्त 2014

संस्कृत












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वेद का पहला श्लोक

अग्निम् ईळे पुरोहितं यज्ञस्य देवम्
ऋत्विजम्. होतारं रत्नधातमम्.

संस्कृत
विश्व के प्राचीनतम ग्रन्थ वेद की भाषा है
अतः संस्कृत को विश्व की प्रथम भाषा
मानने से इंकार के लिये
किसी के भी मन में कोई बाकी संशय नहीं रहता है
संस्कृत की
सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता
स्वम भाषा एवं लिपि के लिए सर्वश्रेष्ठता सिद्ध करती है
संस्कृत
सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी है
इस नाते भी संस्कृत की महत्ता निर्विवाद है
संस्कृत
देवभाषा है
शुभदिनसुन्दरहो
#सारस्वत
08082014 

बुधवार, 6 अगस्त 2014

इंतजार शुरू होने वाला है

















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फिर से ख़त्म न होने वाला
इंतजार शुरू होने वाला है
ख्वाइशों का असर इस बार
मौसम पर नजर आने वाला है
फिर से ख़त्म न होने वाला इंतजार  …

बहुत गुजारी हैं हमने यहाँ
तन्हां अकेली लम्बी रातें
अबके तो कोई वादा भी है
जो साथ में चलने वाला है
फिर से ख़त्म न होने वाला इंतजार  …

पता नहीं जिसको धडकने का
घुम रहा है दिल लिए साथ में
जाने किस पर गिरेगी ये बिजली
जाने किस का कत्ल होने वाला है
फिर से ख़त्म न होने वाला इंतजार  …

फिर लौट आई हैं तमन्नायें भी
काली सर्द रातों के साथ में ही
उम्र की दहलीज है फिर से
खुमारी का दौर आने वाला है
फिर से ख़त्म न होने वाला इंतजार  …

#सारस्वत
13102013

रविवार, 3 अगस्त 2014

साबुत दोस्ती के साथ

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मानता हूँ के  …
नवाब बन गया है तू ,
लोगो के लिए …
ख़ास बन गया है तू ,
जीने का अंदाज़ …
बन गया है तू ,
सचमुच !!
लाजवाब बन गया है तू  .
पर ,
मेरे लिए तो …
आज भी वही है तू ,
मुझे ,
कोई फर्क नही पड़ता …
अब ,
क्या से क्या बन गया है तू  .
ना !! ना !!
अपना ये रॉब …
कंही और दिखाना …
 और ,
यहाँ ! आना हो तो …
आगे से …
बिना लावालशकर के आना  .
जिन्हें ,
तेरे इस कद से …
कुछ लेना देना हो …
इनको वहां लेकर जाना  .
अरे !!
मुझे तेरी दुआ नहीं …
तू चाहिए …
वही !
यारी  …
जान से प्यारी के साथ
वो भी !!
बिना मिलावट के …
"साबुत दोस्ती के साथ"
#सारस्वत
03082014