रविवार, 19 अक्तूबर 2014

रुक जा साँस जरा लेलूं

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रुक जा साँस जरा लेलूं तो
हाल नजर का बतलाऊंगा
दम भर दूँ सूखे पत्तों में
फिर सबरंग भी पढ़वाऊंगा
*
उसकी आँखे मद के प्याले
मधुशाला तक ले जाऊंगा
उसकी पलकों से जो छलके
वो मोती भी दिखलाऊंगा
रुक जा साँस जरा लेलूं तो
हाल नजर का बतलाऊंगा
*
ओठों पर था इत्र इश्क का
अभी खुशबु वो सुंघवाउंगा
लब तर थे वादे वफ़ा से
सभी वादे भी वो सुनवाऊंगा
रुक जा साँस जरा लेलूं तो
हाल नजर का बतलाऊंगा
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रंज ना करना सुनकर तुम
अभी खंजर भी दिखलाऊँगा
दिल में उसके राज़ दबा था
सब राज़ पाश कर जाऊंगा
रुक जा साँस जरा लेलूं तो
हाल नजर का बतलाऊंगा
*
उसकी बस्ती की बंद गलियाँ
सभी तुमको समझाऊंगा
आशिक़ का क्या हाल बुरा था
उस दीवाने सी भी मिलवाऊंगा
रुक जा साँस जरा लेलूं तो
हाल नजर का बतलाऊंगा
#सारस्वत
19102014 

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