शनिवार, 27 दिसंबर 2014

मन में
















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विचारों का कोलाहल है , बेकल मन में
सवाल ही सवाल हैं , व्याकुल मन में

कुछ सुलझी अनसुलझी सी यादें हैं
कुछ अटकी सटकी सी बातें हैं
कुछ स्मृतियाँ हैं प्रतिमाओं की
कुछ जीवित शंकाएं हैं सागर मन में
विचारों का कोलाहल है , बेकल मन में

कभी शब्दों को शब्द नहीं मिलते हैं
कभी खुद में उबलने सुलगने लगते हैं
कभी अखरने लगते हैं शब्दकोश 'तो,
कभी चुप्पी साध लेते हैं मंथन में
विचारों का कोलाहल है , बेकल मन में

कहीं बर्फीली चादर को ओढ़े रिश्ते हैं
कहीं पतझड़ से बिखरे छितरे पत्ते  हैं
कहीं फैला घनीभूत कुंठाओं का कोहरा
कहीं भ्रम के बादल हैं मन उपवन में
विचारों का कोलाहल है , बेकल मन में
#सारस्वत
27122014 

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