सोमवार, 9 मार्च 2015

यादों के गलियारे में

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जब भी अकेलापन काटने को दौड़ता है मुझे 
सीधा यादों के गलियारे में दौड़ लगाता हूँ
ऐसे वक़्त में वो भी साथ में खड़े होते हैं
जिनकी नजरों में बेक़ारा बताया जाता हूँ

वे दोस्त भी मिल जाते हैं इन गलियों में
जिनका पता नहीं आज किस दुनियां में हैं
हस्ते मुस्कुराते मिलते हैं वे भी यहां पर
जिनसे अब कभी मिलना नहीं चाहता हूँ

यहां का मौसम इशारे मेरे ख़ूब समझता है
बिन बादल बारिश जमकर फिर बरसता है
दिन दोपहरी सर्दी गर्मी पतझड़ क्या सावन
मर्ज़ी का मालिक हूँ सब साथ लेके चलता हूँ  

वैसे तो दुनियां की भीड़ का ही हिस्सा हूँ मैं भी 
लेकिन यादों की गलियों का मैं ही बादशाह हूँ
यहां पर सिर्फ सिर्फ मेरा ही रौब चलता है
जिससे दिल करता है बस उसीसे मिलता हूँ
#सारस्वत

09032015

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