मंगलवार, 7 अप्रैल 2015

विचार शुन्य का विचार

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मंथन से मुक्ति की मृत सम्भावनायें हैं
विचार शुन्य का विचार ही विस्फ़ोटक है निशब्द भावनाएं हैं

बेबसी है उदासी है असहाय आशायें हैं
काल्पनिक लोक है स्वर्गिक ऐश्वर्य की अंनत इच्छायें हैं
जीवन है जन्म है जाती भेद स्तम्भ हैं
पानी के कुए हैं कटुता के सरोवर हैं प्रतिबंदित प्रबन्द हैं
द्वेष है घृणा है टूटती मर्यादाएं हैं
रिस्ते हुये रिश्ते हैं कूट चालें हैं और भावुक अभिलाषाएं हैं
मंथन से मुक्ति की मृत सम्भावनायें हैं
विचार शुन्य का विचार ही विस्फ़ोटक है निशब्द भावनाएं हैं

बहुत फरक है जमीं आसमां में
गली मोहल्लों के घरों में दरवाजों के बीच से गुजरती हुई हवा में
अमीरी चमक रही है दौलत की क्यारी है
तो कहीं पर भूख तड़प रही है आँगन में लगी दुख्खों की ढेरी है
अरब की रेत उड़ रही है ज़मीर बंजर है
पत्थर हो गया है सरो का शहर कंक्रीट का जंगल ही जंगल है
मंथन से मुक्ति की मृत सम्भावनायें हैं
विचार शुन्य का विचार ही विस्फ़ोटक है निशब्द भावनाएं हैं

जब तक जीवन है संघर्ष हर पल है
विरोध ही विरोध है मानव के मष्तिष्क में अजीब सा कोलाहल है
सोच है समझ है सक्षम समाज है
बहुरंगी लोग हैं यहां पर बदलती परिभाषाओं से बदलते रिवाज़ हैं
साँस है आस है टूटता विश्वाश है
सुख की सुकून की आत्मिक शांति की आत्मा को फिरभी तलाश है
 मंथन से मुक्ति की मृत सम्भावनायें हैं
विचार शुन्य का विचार ही विस्फ़ोटक है निशब्द भावनाएं हैं
#सारस्वत
24032015

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