मंगलवार, 30 जून 2015

जुदाई के बंदझरोखे से

#
जुदाई में भी हम कहाँ    जुदाई देखते हैं
हम यादों के सफ़र में   तुझको देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

वफ़ा के नाम पर      जला कर के कंदील
उम्मीदों भरी सुबहा की     हम राह देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

दिल ने वादा किया है      चलो निभाएंगें
उठ कर बैठो     बंदझरोखों में क़रार देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

ऐहसास के लिये      विश्वाश का होना जरूरी है
बेयक़ीनी से लोग हैं     यक़ीन में यक़ीन देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

दावे कहते हैं     दुनियां की परवाह नहीं जरा
और धड़कते दिल में    खुद ही फ़र्के जुबाँ देखते हैं
#सारस्वत
30062015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें