शनिवार, 4 जुलाई 2015

टूटती सांसों के साज़

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टूटती सांसों के साज़ 
रात की तन्हाई में सुनाई देते हैं 
दिल के धड़कने की आवाज़
जब कोई सुनने वाला नहीं होता 

तारों सितारों का रुआब भी 
उम्मीद का दीदार नहीं कराता 
सन्नाटा चीर कर जाता है 
जब नज़ारे सब डूब जाते हैं 

खामोशी ठहर जाती है आँगन में 
मातम पसर जाता है दामन में 
जिसवक़्त वक़्त की बदली पर 
पतझड़ का मौसम झूम के आता है 

वीरानियाँ लेती हैं अंगड़ाई 
ख्वाइशें दम तोड़ने लगती हैं 
जब सोई हुई यादें पलटकर 
अचानक ज़ख्म उधड़े दिखाती हैं 

पलकों से छलक कर दो आंसू 
बंद हो जाती हैं सदा के लिये 
दम तोड़ देती है जिंदगी 
मौत शहनाई बजाती है 
#सारस्वत 
04072015 

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