गुरुवार, 9 जुलाई 2015

अक्सर अँधेरी रातों में

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यहां मैं और वहां चाँद
अक्सर अँधेरी रातों में
चाय की प्यालियों में डूबकर
जागा करते हैं रात भर
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कभी तोड़ते हैं खुशियों की गुल्लक
बाँट लेते हैं खुशियाँ आधी-आधी
अश्क़ों की बारिश में कभी कभी 
तकियों को नम करते हैं भिगोकर 
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हँसते हैं , गाते हैं , गुनगुनाते हैं
और कभी-कभी शरमाते भी हैं
यूँ ही एक दूसरे की बातों में
बिता देते हैं रात सारी घर से बेघर
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दुश्मन हैं लेकिन सुबह की किरणें
कर देती हैं हम दोनों को अलग 
चाँद छुप जाता है कहीं बादलों में
फिर मिलने का वादा लेकर देकर
#सारसवत
30082012 

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