रविवार, 6 सितंबर 2015

मैं ही तो हूँ


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जल में थल में नभ में पवन  में  … मैं ही तो हूँ 
फूल में पौधे में जीव में निर्जीव में  … मैं ही तो हूँ 

ईश्वर कहो परमेश्वर कहो या जो तुम्हारी मर्जी कहो 
पितामह कहो या परम पिता मानो   … मैं ही तो हूँ 
अनन्त आकाश से लेकर सूक्ष्मतम कण तक सब 
मन के अवयव मानव तुझमें भी तो  … मैं ही तो हूँ 
स्थल देवस्थल जो निर्माण किया तूने श्रद्धा भाव से  
स्थापित या विथापित यत्र तत्र सर्वत्र … मैं ही तो हूँ 
ज्ञान में विज्ञानं में मनन मंथन और संज्ञान में 
बोध के सम्बोधन में आत्मा और अंतर्मन में  … मैं ही तो हूँ 

मैं ही तो हूँ  … देखता रहता है जो हर क्षण मानव का चरित्र 
मैं ही तो हूँ  … देता रहता हूँ कर्म के हिसाब से सज़ा विचित्र
मैं ही तो हूँ  … जिसने बनाया शून्य नगण्य धन्य का चित्र 
मैं ही तो हूँ  … भूत भविष्य मान सम्मान पिता पुत्र पितृ 
मैं ही तो हूँ  … जिस ने कहा कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान पवित्र 
मैं ही तो हूँ  … जीव जन्म की तूलिका मोक्ष मृत्यु सचित्र
मैं ही तो हूँ  … समयकाल महाकाल विकराल और मित्र 
#सारस्वत 
18101996 

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