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अंतर्मन मंथन की यात्रा पर है
शांति की ख़ोज निरंतर जारी है
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कभी शब्दों को शब्द नहीं मिलते
कभी ओठ चाहकर नहीं खुलते
अकाल पर अकाल भारी हैं
शांति की ख़ोज ...
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रिश्तों के रिश्ते रिस्ते हुये बंधन
फिरभी विषधर लपेटे वृक्ष है चंदन
तृष्णा बुँदे भी पलकों पर आरी हैं
शांति की ख़ोज ...
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तेज़ बिखराया है धूपिया रंगों में
दर्द समाया है रेत के टीलों में
मरुस्थल में मृगतृष्णा तारी है
शांति की ख़ोज ...
#सारस्वत
09092015
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