रविवार, 25 अक्तूबर 2015

प्राणिमात्र का धर्म

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धर्म की जय हो  ...
अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो  ...
विश्व का कल्याण हो
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यह वह ब्रह्म सूत्र है  …
जो धर्म की व्याख्या करता है
प्राणिमात्र का अर्थ हुआ  …
अंतिम व्यक्ति तक सभी में सद्भाव का भाव
जिसका मतलब हुआ  …
ऊंच नीच छोटा बड़ा अपना परया कुछ नहीं
सभी के लिए सभी की सोच में …
सभी के ह्रदय में अंतर्मन में मानवीय सोच रखना
चराचर संसार के  …
समस्त जीव निर्जीव के कल्याण की कामना करना
मन के मनके का यही धर्म है …
मन के अवयव मानव का यही धर्म मानवीय धर्म हैं
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जो भी धर्म इस रस्ते चलेगा  …
सैदेव समान भाव से युगों युगों तक चलता चलेगा
क्योंकि इस भावना में  …
विस्तारवादी कुत्सित कुटिल इच्छाएं नहीं होती
जरूरी नहीं के यह सुत्र  …
केवल हिन्दू सनातनी  वैदिक ही अपना सकते हैं
जब भी  …
जो भी सभ्यता इस गुण सूत्र को अपनाएगी
समाज के पुनुरुत्थान के लिये  …
मानव मात्र की चिंता में संलग्न हो जाएगी
स्वतः
वैदिक सनातनी हो जायेगा
धर्म की जय हो  ...
विश्व का कल्याण हो
हरि बोल
#सारस्वत
23042015 

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