पूरब से चलकर पश्चिम तक , लालिमा आ गई है मितरा
सफर दैनिक आदित्य श्री , आज फिर समपूर्ण हुआ मितरा
आजा मितरा ...
संध्याबेला में लौटने लगें हैं , पक्षीझुण्ड वापस नगरकोट को
तू भी आ जा अपने घर को , तेरी राह निहारे आँगन मितरा
आजा मितरा ...
दुःख के बादल छट जायेंगें , गले मिल कर जब बिसरायेंगें
थम जायेंगीं तपिश तरंगें , प्रभात सुनहरी आएगी मितरा
आजा मितरा ...
आसमान देखो ढलने लगा है , हवायें मद्धम पड़ने लगी हैं
सांसे घुलकर गलने लगीं हैं , मिलन पुकारे अंतिम मितरा
आजा मितरा ...
#सारस्वत
25082015
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