रविवार, 1 नवंबर 2015

कभी ...

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कभी धडकन को छुआ ख़ामोशी ने लिपटे के
तो कभी धडकन ने सुना सूनेपन को सिमट के

कभी गहरे उतरे यादों के समन्दर में नहाने
तो बैठ गये कुये के कुये रिश्ते हुए रिश्तों के
कभी धडकन को छुआ  ...

कभी पैबंद लगी बातों का चला रतजगा सा
तो कभी टाट के झोंके दस्तक देते ख्वाबों के
कभी धडकन को छुआ  ...

कभी दरिया जा ठहरा नाजुक की आँखों में
तो कभी बारिश बेमौसम झीलों में पलकों के
कभी धडकन को छुआ  ...
#सारस्वत
02 06 2013

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