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आज का दिन भी ...
कल की तरह ही पूरब से निकला है
दिनचर आज भी ...
व्यस्तताओं के बीच नितांत अकेला है
उदास रात के बाद ...
प्रभात किरणें भी उदास ही चली आती है
ठहरा हर तरफ पहरा ...
अलबेली खम खामोशी का रुपहला है
पिछड़ गया है दौड़ में
सच को अब यहां कोई पूछता तक नहीं
बदला कुछ भी नहीं ...
झूठे जीवन में ही अब खुशियों का मेला है
हस्ता हसाता चेहरा ...
याद वही आता है जो आंसूं छिपाता है
शरारतें खो गई कहीं ...
मुस्कुराहट बनावटी मुंह हुआ कसैला है
#सारस्वत
29042016
आज का दिन भी ...
कल की तरह ही पूरब से निकला है
दिनचर आज भी ...
व्यस्तताओं के बीच नितांत अकेला है
उदास रात के बाद ...
प्रभात किरणें भी उदास ही चली आती है
ठहरा हर तरफ पहरा ...
अलबेली खम खामोशी का रुपहला है
पिछड़ गया है दौड़ में
सच को अब यहां कोई पूछता तक नहीं
बदला कुछ भी नहीं ...
झूठे जीवन में ही अब खुशियों का मेला है
हस्ता हसाता चेहरा ...
याद वही आता है जो आंसूं छिपाता है
शरारतें खो गई कहीं ...
मुस्कुराहट बनावटी मुंह हुआ कसैला है
#सारस्वत
29042016
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